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Showing posts from September, 2010

मुझे ये एहसास दिलाया..

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चल रहे थे तेरा हाँथ थाम साथ तेरे हंसी थी वादियाँ सुहाना था समां तेरी नजरों में दिख रहे थे दोनों जहाँ मुस्कान पे तेरी मर मिटने को   दिल चाह रहा था प्यार से तुने मुझे गले लगाया कभी न होंगे जुदा ये यकीं दिलाया जी रहे थे इस पल को ख्वाब में मेरी भीगी पलकों ने   मुझे ये एहसास दिलाया

हर लम्हा बिखरना सिमटना ...

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एक लम्हा तेरी जुदाई का काफी है मुझे बिखेरने को एक लम्हा तेरे साथ का काफी है मुझे समेंटने को एक हैं हम तुम तो क्यों ये हर लम्हा बिखरान सिमटना प्यार जो करते हो हमसे फिर क्यों ये हर पल का सताना दिल है ये मेरा नाजुक इससे बार बार न आजमाना रूठ गए जो न जाए कितने बरसों बाद होगा फिर आना प्यार है जो ये पाया तो इसे संजोलो अपनी यादों में की इन्ही यादों के सहारे कट जाएगा सदियों का सफ़र की हर लम्हे बसा होगा तेरे मेरे प्यार का फ़साना

दरिया ने रुख मोड़ा नहीं...

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दरिया ने कभी अपना रुख   किसी से डर के मोड़ा नहीं चट्टानो ने चाहा रोकना     न जाने दिए जखम कितने सागर से मिलने खातिर   दरिया ने कभी बहना छोड़ा नहीं तुझसे मोह्ब्त करके     मैं खुद से शर्मिंदा नहीं दुनिया ने किया सितम     न जाने दिए जखम कितने पर तुझे चाहने से     खुद को कभी हमने रोका नहीं तुझसे मिलने खातिर     बंदिशों में कभी खुद को जकड़ा नहीं दरिया ने कभी अपना रुख  किसी से डर के मोड़ा नहीं