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Showing posts from October, 2010

जो भी हूँ तुमसे हूँ...

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जो भी हूँ आज मैं वो तुमसे हूँ मैंने तो न की थी कदर अपने साए की भी न जाना था कभी है रूप लाजवाब मेरा जब तक न देखा था तेरी निगाहों में अक्स अपना समझा था खुद को पत्थर का एक टुकड़ा जब तक तेरी तेज किरणों न मुझे छुआ न था जिंदगी भर न भरने वाले जख्म भी तेरे होने से देते हर पल का सुकून हैं आज लोग जो कहते थे पत्थर समझते हैं हीरा मुझे पर इस हीरे को कभी तराशा था तुमने हीरा जान कर तू जो साथ था हो गयी जीत मेरी इस कभी न हारने वाली जिंदगी से जशन मानाने आज वजह है लाखों पर क्यों तू हर पल मेरे साथ नहीं

आब-ओ-गिल ......

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कहाँ कहाँ न खोजा अपना वजूद आब - ओ - गिल में भी अपनापन न मिला तदबीरे सारी नाकाम रहीं एक पल को न कहीं सुकून मिला चैन - ओ - आराम सब छीन गया हल लम्हा बस तन्हाई ने था साथ दिया भटकते रहे दर बदर तेरे आने तक जाना वजूद का सबब तेरी निगाहों में बिन मन्जिल जिंदगी का सफ़र तय कर आज आ पहुंचें हैं तेरे आसियाने में क्या रखा है कुछ खोने और पाने में मेरी तो जिंदगी है बस तेरे मुस्कुराने में