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इश्क को खुदा बनाया...

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क्या जाना है कभी किसी ने की उसे तलाश क्या लापता अनजान राहें मंजिलों की किसे है खबर बहता दरिया ये जीवन आखिरी मंजिल है बस सागर सागर से मिलने खातिर कितना जुदा जुदा सा ये रास्ता कभी धरा पे बहना कभी मौजौ के संग अठखेलियाँ तो कभी धरा से गिर फिर धरा में सिमट जाना ठोकर लगे फिर भी है आखिर आगे बढ़ते रहना जूनून है एक ही की दरिया को बस सागर से मिलाना चाहे पथरीली राहें या ठोकर या मिलें मौजें दरिया को तो है हर हाल में बहते रहना सागर से मोहब्बत ही है दरिया की बेखुदी कोई न कैद कर सके इतनी रवानगी मौजौ की बस सागर से मिलते ही दरिया की फिर कोई हस्ती नहीं सदियों चल के आये दरिया को सागर ने खुद में समाया अपनी हस्ती मिटा सकता वही जिसने इश्क को खुदा बनाया

की मेरी चाहत में भी खुदाई है ...

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इंतज़ार किया है तेरा सदियों तक तू आया भी तो झलक दिखाने मुझ पर सितम ढाने या आजमाने मुझपे सितम न ढा ज़ालिम की सदियाँ बितायीं है तेरी राह में आजमाले मुझे चाहे जितना की मेरी चाहत में भी खुदाई है

एक अधूरा अहसास ....

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उन बारिश की बूंदों से पूछा मैंने कहाँ गयी उनकी ताजगी वो दिल लुभाती सादगी मासूम सा चेहरा नज़रों से होती संजीदगी बयां सादगी की मूरत कहूं या सूरत मैं भोलापन बेपनाह एक दिन यूँ ही जब मिले एक अपनापन सा महसूस किया पर बारिश मैं भीग के भी दिल था मेरा सूखा हुआ ऐसा लगा जैसे अकेले मुसाफिर को एक पड़ाव मिल गया थक के कहीं रुक न जाएँ ये कदम बीच राह कभी इन क़दमों को उनके हौसले का सहारा मिल गया न सोचा था की साथ चलेंगे वो हमारे रास्ते यूँ की हमदर्द बनते बनते जिंदगी भर का दर्द दे जायेंगे जाने क्या तकाजा उनका की मेरी तलाश को वो अपनी मजिल बनायेंगे हम दोस्ती की इबादत करेंगे वो खुद को इश्क का रोग लगायेंगे दिल से बना हर एक रिश्ता इश्काना हो ये जरूरी नहीं मोहब्बत हो ही जाए दोस्त से ये दोस्ती का पैमाना नहीं इश्क हो गया था उन्हें हमसे इस मैं हमारी क्या खता थी दोस्ताना वफ़ा की खातिर हम उन्हें अपनी जान भी दे देते प