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एक अधूरा अहसास ....
उन बारिश की बूंदों से पूछा मैंने कहाँ गयी उनकी ताजगी वो दिल लुभाती सादगी मासूम सा चेहरा नज़रों से होती संजीदगी बयां सादगी की मूरत कहूं या सूरत मैं भोलापन बेपनाह एक दिन यूँ ही जब मिले एक अपनापन सा महसूस किया पर बारिश मैं भीग के भी दिल था मेरा सूखा हुआ ऐसा लगा जैसे अकेले मुसाफिर को एक पड़ाव मिल गया थक के कहीं रुक न जाएँ ये कदम बीच राह कभी इन क़दमों को उनके हौसले का सहारा मिल गया न सोचा था की साथ चलेंगे वो हमारे रास्ते यूँ की हमदर्द बनते बनते जिंदगी भर का दर्द दे जायेंगे जाने क्या तकाजा उनका की मेरी तलाश को वो अपनी मजिल बनायेंगे हम दोस्ती की इबादत करेंगे वो खुद को इश्क का रोग लगायेंगे दिल से बना हर एक रिश्ता इश्काना हो ये जरूरी नहीं मोहब्बत हो ही जाए दोस्त से ये दोस्ती का पैमाना नहीं इश्क हो गया था उन्हें हमसे इस मैं हमारी क्या खता थी दोस्ताना वफ़ा की खातिर हम उन्हें अपनी जान भी दे देते प
तेरे कदम थमे क्यों ?
चल चलें कहीं दूर, जहाँ बस तू और मैं थमे क़दमों को रोक न ,मेरे पास आने दे जिन दीवारों में दरारें हैं उन दीवारों को तोड़ दें जिन बेड़ियों से जकड़े हैं उन बेड़ियों को तोड़ दें अब देर कैसी ,क्यों किसलिए सोचना इतना तेरे दिल में जो आशियाना ,चल वहीँ जा बसें जीना है तुझे मेरे साथ ,मरना है मुझे तेरे साथ काफी नहीं क्या ये , इस प्यार के लिए
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