इश्क को खुदा बनाया...
क्या जाना है कभी किसी ने की उसे तलाश क्या लापता अनजान राहें मंजिलों की किसे है खबर बहता दरिया ये जीवन आखिरी मंजिल है बस सागर सागर से मिलने खातिर कितना जुदा जुदा सा ये रास्ता कभी धरा पे बहना कभी मौजौ के संग अठखेलियाँ तो कभी धरा से गिर फिर धरा में सिमट जाना ठोकर लगे फिर भी है आखिर आगे बढ़ते रहना जूनून है एक ही की दरिया को बस सागर से मिलाना चाहे पथरीली राहें या ठोकर या मिलें मौजें दरिया को तो है हर हाल में बहते रहना सागर से मोहब्बत ही है दरिया की बेखुदी कोई न कैद कर सके इतनी रवानगी मौजौ की बस सागर से मिलते ही दरिया की फिर कोई हस्ती नहीं सदियों चल के आये दरिया को सागर ने खुद में समाया अपनी हस्ती मिटा सकता वही जिसने इश्क को खुदा बनाया