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गुरु नाम ....

हर रूप में तुम्हें  मैंने पाया है  बचपन में माता-पिता कह कर पुकारा  पाठशाला में तुम्हे अपना शिक्षक पाया है  दोस्तों में भी तुम्हारे अस्तिस्त्व का अहसास  जिंदगी में मिले हर इंसानी साए में  तुम्हारे रूप का आभास समाया है  मासूम से दिल की ख्वाहिशों में  तुम्हे जीवन के रंग भरते पाया है  मेरी धड़कन में प्यार के अहसास से  अपने आप को तुम्हारी पनाहों में पाया है  तुम्हारी हर रूप में मौजूदगी ने  मुझे इस भवसागर से पार लगाया है  वेदों में भी तुम पूजे जाते हो  इस जग ने अनेकों रूप में भी  गुरु नाम से तुम्हे बुलाया है  तुम्हारी आराधना में मेरे ईश्वर  मैंने समर्पण और श्रधा का भाव पाया है  उसी श्रधा भाव के कुछ पुष्प पिरोकर ये भाव आज मैंने शब्दों में सजाया है 

तुम मेरे पास हो ....

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तन्हाई मैं भी तुम मेरे पास हो भीड़ में भी एक ख्याल बन आस पास हो जब भी गुजरें हम उन गलियों से आज भी तुम वहाँ करते हमारा इंतज़ार हो ठहरा है आज भी हर एक पल वहां जैसे जिंदगी बाँध ली वक़्त ने संग अपने  मैं जिंदगी के साथ आगे बढ़ तो गयी पर साँसें जैसे उन्ही पलों में थम के रह गयीं तुम ही बताओ की क्या कहूं मैं कि किस दौर मैं जी रही हूँ कहने को तो जिन्दा ही हूँ पर धडकनों मैं कोई जज़्बात नहीं है अब तुम ही बताओ कैसे कहूं मैं की मुझे तुमसे प्यार नहीं है

साथ बीता दो लम्हों का सफ़र.....

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साँसे उलझी उलझी सी अंखियों मैं नमी नमी सी जाने कौन अजब सी बात की हम अब तक उन्हें भूले नहीं कभी हंसूं नाम आँखों से तो कभी गम में भी मुस्काऊँ किस राह चल के जाऊं की तेरे कदमों के निशां पा जाऊं जिंदगी के रास्ते अनजाने कभी एक पल को दिल सहमे ऐसे जैसे मेरे जीवन से साँसों की डोर रूठ गयी साथ बीता दो लम्हों का सफ़र और कुछ इस तरह की हम तेरे हर पल के एह्सास के हमसफ़र बन कर रह गये  इस सफ़र में तेरी खुशबु बिखर रही थी मेरे जहन में हौले से की अचानक एक दिन जिंदगी जुदा राहों पे बिन बताये मुड गयी न देख पाए और न कह सके हम तुमसे अलविदा एक बार पीर इतना की बस दिल चीर अँखियाँ से नीर धरा बह गयी   चाहा जुबान ने कुछ कहना पर ये धारा लफ़्ज़ों को बहा ले गयी अब सुबह से शाम तलक तेरे क़दमों के निशान खोजा करते हैं रातों को सितारों से तुझ तक पहूचाने की मिन्नतें किया करते हैं सदियों तलक बस एक आस में यूँ ही बीत रहे हैं सारे लम्हे   की कभी तो गुजरेगा तू उन्ही जुदा राहों फिर से एक बार  मेरा दिल जो अब तक धड़कता है तेरे सीने में बन एक अहसास

इन साँसों की उलझन में …….

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उस पल ठहरा रहा तू मेरी साँसों पे   जैसे पत्तों की कोर पे एक बूँद ओस की   गुजारिश मेरी इस चंचल हवा से बस इतनी   की ले न जाए वो तुझे संग अपने उड़ा के कहीं   गुजारिश वक़्त से ये लम्हा थम जाए अभी यहीं   ये एक लम्हा एक पल एक सांस ऐसी जिसमें   समंदर से उठकर समंदर में सिमटती लहरें   धरा से उठकर धरा में सिमटते झरने   सूरज की रोशनी से गुम चांदनी में सिमटते अँधेरे   बादलों से लिपटे आसमान में बिखरे रंग सुनहरे   लहरों संग खेलते रेत पे लिखे नाम तेरे मेरे   कुदरत ने रचा ये खेल कुछ ऐसा की  हम साँसों की उलझन में खो गए  और अनजाने इन साँसों की उलझन में  कितनी ही सदियों के फासले मिट गये

हाँ तुम ही तो हो …..

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हाँ  तुम ही तो हो  मेरा एक अधूरा हिस्सा  लगे अब भी बाकी है लिखने को  इश्क की किताब में  एक किस्सा  न जाने कैसे कब कहाँ  मिल जाते हो तुम मुझे  बन के जोगी जला जाते हो  दीप मेरे मन में अपने इश्क का  जोगन हो गयी रोगन हो गयी  जी के तेरे साथ रिश्ता एक पल का  और क्या कहूं मैं अब की  करती हैं बयां मेरी अखियो सिलसिला तेरी मेरी मुलाकातों का  हाँ तुम ही तो हो ........