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क्या इंसाफ है तेरा भी ऐ खुदा अपने गुनाहों का जुर्माना पूछा था देना था तो बैराग ही दे देता क्यों बेवजह इश्क़ की राह थमा दी ?
कभी ख्वाब,कभी हकीकत,कभी कुछ ख्याल,कभी खोजते हैं वजूद अपना बस यही दुनिया है मेरी,जिस रह चल पड़े ये दिल वहीँ होती है राहगुजर अपनी....