जो भी हूँ तुमसे हूँ...
जो भी हूँ आज मैं वो तुमसे हूँ मैंने तो न की थी कदर अपने साए की भी न जाना था कभी है रूप लाजवाब मेरा जब तक न देखा था तेरी निगाहों में अक्स अपना समझा था खुद को पत्थर का एक टुकड़ा जब तक तेरी तेज किरणों न मुझे छुआ न था जिंदगी भर न भरने वाले जख्म भी तेरे होने से देते हर पल का सुकून हैं आज लोग जो कहते थे पत्थर समझते हैं हीरा मुझे पर इस हीरे को कभी तराशा था तुमने हीरा जान कर तू जो साथ था हो गयी जीत मेरी इस कभी न हारने वाली जिंदगी से जशन मानाने आज वजह है लाखों पर क्यों तू हर पल मेरे साथ नहीं