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Showing posts from July, 2012

इन साँसों की उलझन में …….

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उस पल ठहरा रहा तू मेरी साँसों पे   जैसे पत्तों की कोर पे एक बूँद ओस की   गुजारिश मेरी इस चंचल हवा से बस इतनी   की ले न जाए वो तुझे संग अपने उड़ा के कहीं   गुजारिश वक़्त से ये लम्हा थम जाए अभी यहीं   ये एक लम्हा एक पल एक सांस ऐसी जिसमें   समंदर से उठकर समंदर में सिमटती लहरें   धरा से उठकर धरा में सिमटते झरने   सूरज की रोशनी से गुम चांदनी में सिमटते अँधेरे   बादलों से लिपटे आसमान में बिखरे रंग सुनहरे   लहरों संग खेलते रेत पे लिखे नाम तेरे मेरे   कुदरत ने रचा ये खेल कुछ ऐसा की  हम साँसों की उलझन में खो गए  और अनजाने इन साँसों की उलझन में  कितनी ही सदियों के फासले मिट गये

हाँ तुम ही तो हो …..

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हाँ  तुम ही तो हो  मेरा एक अधूरा हिस्सा  लगे अब भी बाकी है लिखने को  इश्क की किताब में  एक किस्सा  न जाने कैसे कब कहाँ  मिल जाते हो तुम मुझे  बन के जोगी जला जाते हो  दीप मेरे मन में अपने इश्क का  जोगन हो गयी रोगन हो गयी  जी के तेरे साथ रिश्ता एक पल का  और क्या कहूं मैं अब की  करती हैं बयां मेरी अखियो सिलसिला तेरी मेरी मुलाकातों का  हाँ तुम ही तो हो ........