तुम सा फ़रिश्ता
 
         जब जिंदगी रूठ जाया करती हैं हमसे    बिछड़ जाती हैं राहें और मुँह फेर लेते हैं लोग       अंधेरों में जब मेरे ही अपने दो साए होते हैं    उस बेरहम वक़्त में अपने भी पराये होते हैं       अपनों  से लगने वाले बेगानों की भीड़ में    कभी एक बेगाना अपना बन हाँथ थाम लेता है        अंधेरों से भरी राहों में जब डूबने लगती हैं सासें    उबरने को रौशनी का एक तिनका ही काफी हुआ करता है       किस्मत वालों को मिलता है तुम सा फ़रिश्ता उन अँधेरी राहों  में    जो बनके दोस्त भर जाता है रौशनी बुझे चरागों  में