आब-ओ-गिल ......
कहाँ कहाँ न खोजा अपना वजूद
आब-ओ-गिल में भी अपनापन न मिला
तदबीरे सारी नाकाम रहीं
एक पल को न कहीं सुकून मिला
चैन-ओ-आराम सब छीन गया
हल लम्हा बस तन्हाई ने था साथ दिया
भटकते रहे दर बदर तेरे आने तक
जाना वजूद का सबब तेरी निगाहों में
बिन मन्जिल जिंदगी का सफ़र तय कर
आज आ पहुंचें हैं तेरे आसियाने में
क्या रखा है कुछ खोने और पाने में
मेरी तो जिंदगी है बस तेरे मुस्कुराने में
immense feelings are there good
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