हाँ तुम ही तो हो …..
हाँ तुम ही तो हो
मेरा एक अधूरा हिस्सा
लगे अब भी बाकी है लिखने को
इश्क की किताब में एक किस्सा
न जाने कैसे कब कहाँ
मिल जाते हो तुम मुझे
बन के जोगी जला जाते हो
दीप मेरे मन में अपने इश्क का
जोगन हो गयी रोगन हो गयी
जी के तेरे साथ रिश्ता एक पल का
और क्या कहूं मैं अब की
करती हैं बयां मेरी अखियो
सिलसिला तेरी मेरी मुलाकातों का
हाँ तुम ही तो हो ........
तुम ही तो हो
ReplyDeleteमेरा एक अधूरा हिस्सा
लगे अब भी बाकी है लिखने को
इश्क की किताब में एक किस्सा ....बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
Meri kavita padhane aur pasand karne ke liye aapka bahut bahut Dhanyawaad Sushma ji !!
ReplyDelete