गुरु नाम ....


हर रूप में तुम्हें  मैंने पाया है 
बचपन में माता-पिता कह कर पुकारा 
पाठशाला में तुम्हे अपना शिक्षक पाया है 
दोस्तों में भी तुम्हारे अस्तिस्त्व का अहसास 
जिंदगी में मिले हर इंसानी साए में 
तुम्हारे रूप का आभास समाया है 

मासूम से दिल की ख्वाहिशों में 
तुम्हे जीवन के रंग भरते पाया है 
मेरी धड़कन में प्यार के अहसास से 
अपने आप को तुम्हारी पनाहों में पाया है 
तुम्हारी हर रूप में मौजूदगी ने 
मुझे इस भवसागर से पार लगाया है 

वेदों में भी तुम पूजे जाते हो 
इस जग ने अनेकों रूप में भी 
गुरु नाम से तुम्हे बुलाया है 
तुम्हारी आराधना में मेरे ईश्वर 
मैंने समर्पण और श्रधा का भाव पाया है 
उसी श्रधा भाव के कुछ पुष्प पिरोकर
ये भाव आज मैंने शब्दों में सजाया है 

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