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भावनाओं के दरिया में .....
कहाँ हुआ गुम तू सजना की अब बस मेरी ही आवाज है गूँजे दिल में हुआ सूनापन इतना बेताब सी नजरें राहों पे टीकी की जैसे तलाशती हो गुजरा हुआ कल अपना बेबस से लब ये मेरे सिये हुए जैसे भावनाओं के दरिया में तलाशते हों शब्द अपना तुम्हें शायद इस बात का अहसास नहीं जाते जाते ले गए संग तुम जीवन मेरा बुत बन कर खड़े रह गए हम यूँ ही की अब तो न रहा अहसास अपनी ही धड़कन का
कुछ अधूरे सपने …..
सुबह सुबह से शोर गुल … नींद टूट गयी और बस हो गया दिन शुर .... वही रोज की भागदौड़ , रास्ते चलते भागते लोग … भूल चुके जिंदगी का मतलब … एक जोर का धक्का लगा और में गिर पड़ी … उठ के देखा एक नयी जगह , क्या कर रही हूँ यहाँ ?? कैसे आई ?? ये तो वही जगह है जो मैं रोज सपनों में देखा करती हूँ ….वही समन्दर का किनारा और वही पेड जिसके नीचे मैं बैठ कर ख्यालों में खो जाया करती थी , वही ढलती सुनहरी शाम रंगों से सजी … एक एक कर के सारे सपने याद आने लगे …कुछ अधूरे भूले सपने जिनपे बीते वक़्त की रेत पड चुकी थी . भागते भागते भूल ही गयी की जाना कहाँ है , किसलिए इतना भाग रही हूँ ,उस दौड़ में शामिल हूँ जिसमें लोग बिन मंजिल भागते जाते हैं… "कोई न जीतता है और न कोई हारता है क्यों की ये दौड़ कभी थमती नहीं है …" एक तेज हवा का झोंका मेरे गालों को छूकर मुझे ख्यालों की नींद से जगा गया…. जिंदगी की भागदौड़ में कभी इस शीतल पवन का अहसास न हुआ … हवा ने जगाया तब भी था मुझे पर मुझे ही इस शीतल पवन को महसूस करने का वकत और होश नहीं था , जिंदगी जीने का जोश नहीं था, दिल में उमंग नहीं थी या यूँ कहूं जिंदगी को में कभी जाना...

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