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हर लम्हा बिखरना सिमटना ...

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एक लम्हा तेरी जुदाई का काफी है मुझे बिखेरने को एक लम्हा तेरे साथ का काफी है मुझे समेंटने को एक हैं हम तुम तो क्यों ये हर लम्हा बिखरान सिमटना प्यार जो करते हो हमसे फिर क्यों ये हर पल का सताना दिल है ये मेरा नाजुक इससे बार बार न आजमाना रूठ गए जो न जाए कितने बरसों बाद होगा फिर आना प्यार है जो ये पाया तो इसे संजोलो अपनी यादों में की इन्ही यादों के सहारे कट जाएगा सदियों का सफ़र की हर लम्हे बसा होगा तेरे मेरे प्यार का फ़साना

दरिया ने रुख मोड़ा नहीं...

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दरिया ने कभी अपना रुख   किसी से डर के मोड़ा नहीं चट्टानो ने चाहा रोकना     न जाने दिए जखम कितने सागर से मिलने खातिर   दरिया ने कभी बहना छोड़ा नहीं तुझसे मोह्ब्त करके     मैं खुद से शर्मिंदा नहीं दुनिया ने किया सितम     न जाने दिए जखम कितने पर तुझे चाहने से     खुद को कभी हमने रोका नहीं तुझसे मिलने खातिर     बंदिशों में कभी खुद को जकड़ा नहीं दरिया ने कभी अपना रुख  किसी से डर के मोड़ा नहीं

हम अब तक तन्हा

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काश की वो हमसे भी मिला करते     दिखाते हम उन्हें अपनी चाहत बेपनाह कैसे बताएं उन्हें की करते हैं हम   बेसब्री से पलकें बिछाए उनका इंतज़ार काश की वो हमसे भी मिला करते   सुनते हम बैठे उनकी बातें सारी सारी रात कैसे बताएं उन्हें की उनकी आवाज़ सुनने को   ये दिल कब से है बेकरार काश की वो हमसे भी मिला करते     कर देते मुस्कुरा अपनी जाँ उनपे निसार कैसे बताएं उन्हें की उनकी मुस्कराहट पे     ये दिल धडक उठता है सौ बार न जाने क्यों करते है उनसे प्यार इतना   वो आये न कभी और हम अब तक तन्हा