इम्तिहान जिंदगी का ...

न थमा कभी हाँथ तेरा न कभी गले लगाया
पर जब भी साथ चले एक ही था हमारा साया
मैं हैरान खड़ी निहारती रही उस साए को
तब न समझ सकी की ऐसा आखिर हुआ क्यों
आज जब गुजरती हूँ उन्ही गलियों से तन्हा
अपने ही अधूरे साए का साथ है होता
तेरे न होने का हर पल आहसास है होता
ये भी एक इम्तिहान समझ जिंदगी का
लड़ रही मेरी हर साँस अपने इस अधूरे जीवन के साथ
मकसद जीने का वही जो तुने दिया है मुझे
मुकदार मेरा की मैंने पाया भी और खोया भी तूझे
अब तू ही बता मेरे रब्बा, क्या ये है तेरा करम मुझ पर
या न जी सकूं एक पल सुकून से ये सजा की है मुक्कार्रार
ये सवाल मेरा है क़र्ज़ तेरी खुदाई तेरी इबादात पर

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