मेरी मंजिल की राह ..
मेरा दिल ले जाए जहाँ बस वहीँ मंजिल मेरी
मिलते रहेंगे इस सफ़र में हर मोड़ पे हमसफ़र कई
हर किस को मंजिल की तलाश और रास्तों की कमी नहीं
चलते चलते जो हो जाए साँझ कभी कहीं
थामना पड़ेगा एक रात को बस उसी मोड़ पे वहीँ
ये ठहराव सिर्फ एक पल का है जिंदगी कभी थमती नहीं
लगता है जैसे कभी मिलेगी मंजिल मुझे खुद में
इसलिए खुद को समझना ही मेरी मंजिल की राह है
इस राह में चलने वाले हमसफ़र की तलाश है
'मेरा दिल ले जाए जहाँ बस वहीं मंजिल मेरी...'
ReplyDeleteअच्छे भाव। अच्छी प्रस्तुति।
शुभकामनाएं आपको।
आप मेरे ब्लाग में आकर इस दिलचस्प रपट को पढिए। आपके कमेंट के इंतजार में...
http://atulshrivastavaa.blogspot.com/2011/03/blog-post_26.html
आप अपने ब्लाग से शब्द पुष्टिकरण हटा लें, इससे टिप्पणी करने वालों को आसानी होगी।
ReplyDeleteसुंदर सरल रचना । शुभकामनाएं आपको
ReplyDeletesuper kewl ... loved it ...
ReplyDeletehumsafar ka achcha vivaran hai .. is kavita mein.. achchi soch ki achchi prastooti.
ReplyDeletewww.coffeefumes.blogspot.com