हर पल से मुकरना तेरा
हर बात जानकार भी हर पल से मुकरना तेरा
हर एक मुलाक़ात के बाद अनजाना मुझे कहना
दिल की दस्तक को सुनकर भी अनसुना कर देना
फिर भी बीतना हर पल में और यादों में जलना
क्यों इनकार है जब बीता पल खुद करता इकरार है
क्यों भागना दूर मुझसे जब दिल तेरा मेरे ही पास है
मुझे एहसास है हर बात जुबाँ से कहना मुनासिब नहीं
इस इश्क को ताउम्र कैद-ए-नजर की सजा मुख्तार है
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